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________________ [५८९] दुख वेदन दूसरों के शुभ कर्म से सुख प्राप्त कर लेगा। किसी भी मनुष्य को मुक्ति प्राप्त न हो सकेगी, क्योंकि उसे पर-कृत कर्मों का फल भोगना होगा। इस प्रकार उसके मोक्षसाधक सभी अनुष्ठान निष्फल हो जाएँगे। ऐसा होने से कृतकर्मनाश और अकृतकर्माभ्यागम दोष श्राएँगे अर्थात् किये कर्मों का फल न मिलना और विना किये का फल मिलना, यह दोनों बाधाएँ उपस्थित होंगी। अतएव यही मानना अनुभव और युक्ति के अनुकूल है कि जीव अपने किये हुए कर्मों का ही फल भोगता है, पराये किये का नहीं। कमी मत समझो कि का दूसरा है और आपत्ति हमारे सिर श्री पड़ी है । विना किया कोई भी कर्म भोगा . नहीं जाता। यह संभव है कि अभी तुमने कोई कार्य नहीं किया है और फल भोगना पड़ रहा है, मगर यह फल तुम्हारे ही किसी समय किये कर्म का फल है। प्रत्येक कर्म का फल तत्काल नहीं मिल जाता। इसलिए हमारे किस कर्तव्य का फल किस समय मिलता है, यह चाहे समझ में न आये, तथापि यह सुनिश्चित है कि तुम जो फल आज भोग रहे हो वह तुम्हारे ही किसी कर्म का है। , हम अपने ही किये कर्म का फल भोगते हैं, यह जान लेने पर शान्ति ही रहती है, अशान्ति नहीं होती । अपनी आँख में अपनी ही उँगली लग जाय तो उलहना किसे दिया जाय ! उसे शान्तिपूर्वक सह लेने के सिवाय और क्या उपाय है ? दूसरा उँगली लगाता तो उलहना दिया जा सकता था। लेकिन ज्ञानी जन कहते हैं-अगर कभी दूसरे की उँगली आँख में लग जाय, तो भी समभाव रखना चाहिए, क्योंकि
SR No.010494
Book TitleBhagavati Sutra par Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherSadhumargi Jain Shravak Mandal Ratlam
Publication Year1947
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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