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श्रीभगवती सूत्र
[५८८] अर्थात् स्वयं प्रात्मां ने जो कर्म पहले उपार्जन किये हैं, उन्हीं कमों का शुभ या अशुभ फल वह आत्मा भोगता है। अगर दूसरे के किंय हुएं कौ का फल आत्मा भोगने लगे तो अपने किये कर्म निष्फल हो जाएँगे।
कई लोग कहते हैं-लोक में यह देखा जाता है कि कोई कर्म करता है और दूसरा कोई उसका फल भोगता है । उदाहरणार्थ-इंग्लेण्ड और जर्मनी परस्पर युद्ध करते हैं, मगर उसका फल भारतवर्ष को भी भुगतना पड़ता है। इस सम्बन्ध में शास्त्रकार कहते हैं कि यह समझ की कमी हैं । धर्म शास्त्र के ज्ञाता यही मानते हैं कि कर्ता द्वारा जो किया जाता है, वही कर्म कहलाता है । जिसें का नहीं करता वह कर्म ही नहीं है। . क्रियते इति कर्म। . .
... अर्थात् कर्ता द्वारा जो किया जाय,वह कर्म कहलाता है। .. अगर नहीं किये हुए कर्म भोगे जाते हैं, तो किये हुए ..कर्म विना फल के. ही नष्ट भी हो जाएँगे। ऐसी स्थिति में
बड़ी गड़बड़ी मंचेंगी। कल्पना कीजिए एक व्यक्ति ने शुभ कर्म किया और दूसरे ने अशुभ कर्म किया। शुभ कर्म का फल शुभ और अशुभ कर्म का फल अंशुभ है। अगर एक व्यक्ति दूसरे के कर्म का भी फल भोगता है तो उसे शुभ और अशुभ फल एक ही साथ भोगना पड़ेगा ! दूसरे के कर्म का फल भागन के कारण कोई भी प्राणी सुखी नहीं हो सकेंगा, क्योंकि उसे दसरों के अशुभ कर्म भोगने पड़ेंगे । इसी प्रकार कोई भी जीव अशुभं कर्म करके भी दुःख नहीं भोगेगा. क्योंकि वह