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________________ ५८७ ] • दुःख वेदन गौतम स्वामी ने स्वयंकृत (अपने किये ) कहकर दुसरे द्वारा किये हुए दुःख को भोगने की बात हटाई है। इस प्रश्न द्वारा उन्होंने अन्य अनेक मतों के विधान का निषेध करके जैन धर्म की मान्यता प्रकट की है। किसी-किसी मत में यह स्वीकार किया गया है कि कर्म दूसरा करता है और उसका फल दूसरा भोगता है। गौतम स्वामी ने यह प्रश्न उपस्थित करके इस मान्यता को हटाया है। कदाचित् कोई यह आशंका करे कि दूसरे के किये कर्म, दुसरा नहीं भोगता, इसमें क्या प्रमाण है ? इसके उत्तर में शास्त्रकार का कथन यह है कि अगर ऐसा हो तो समस्त लौकिक और लोकोत्तर व्यवहार गड़बड़ में पड़ जाएँगे। यज्ञदत्त के भोजन करने से देवदत्त की भूख नहीं मिटती, यह प्रत्यक्ष देखा जाता है। यज्ञदत्त के निद्रा लेने से देवदत्त की थकावट नहीं मिटती; यह भी प्रत्यक्ष सिद्ध है । देवदत्त के औषध सेवन से यशदत्त का रोग नहीं मिटता, यह वात कौन नहीं जानता? जो भोजन करता है उसी की भूख मिटती है, जो सोता है उसी की थकावट दूर होती है और जो औषध · का सेवन करता है वही निरोग होता है, यह बात इतनी प्रसिद्ध है कि बच्चा-यचा जानता है । यह वात कर्म के सम्बन्ध में भी समझी जा सकती है। कहा भी है स्वयंकृतं कर्म यदात्मना पुरा, - फलं तदीयं लभते शुभाशुभम् । . परेण दत्तं यदि लम्यते स्फुटं, स्वयंकृतं कर्म निरर्थकं तदा ॥
SR No.010494
Book TitleBhagavati Sutra par Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherSadhumargi Jain Shravak Mandal Ratlam
Publication Year1947
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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