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श्रीभगवती सूत्र
[१४६] ___ उत्तर-गौतम? उदीर्ण-उदय में आये हुर-कर्न को भोगता है, अनुदीर्ण कर्म को नहीं भोगता। इस लिए कहा गया है-'कुछ भोगता है, कुछ नहीं भोगता।' इस प्रकार चौबीस दंडकों में, यावत्-वैमानिक तक समझना ।
प्रश्न-भगवन्! जीव स्वयंकृत कर्म भोगते हैं ? उत्तर-गौतम ! कुछ भोगते हैं. कुछ नहीं भागते । प्रश्न-सो किस कारण ?
उत्तर- गौतम । उदीर्ण कर्म को भोगते हैं, अनुदीर्ण को नहीं भोगते. इस कारण ऐसा कहा है। इस प्रकार यावबैमानिकों तक समझना चाहिए ।
प्रश्न-भगवन् ! जीव स्वयंकृत आयु को भोगता है ?
उत्तर-गौतम ! कुछ को भोगता है, कुछ को नहीं भोगता । जैसे दुःख-कर्म-के विषय में दो दंडक कहे हैं, उसी प्रकार आयुष्य के सम्बन्ध में भी एकवचन और बहुः
चन वाले दो दंडक कहने चाहिए । एक वचन से यावत्वैमानिकों तक कहना और बहुवचन से भी उसी प्रकार कहना चाहिए।
व्याख्यान-गौतम स्वामी भगवान् महावीर से प्रश्न करते हैं-हे भगवन् ! जीव क्या स्वयंकृतं दुःख भोगता है ?