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चलमाणे चलिए हाँ, तो कर्म, स्थिति पूर्ण होने पर भी उदय-श्रावलिका में आते हैं और उदीरणा से भी आते हैं। मान लीजिए आपको किसी का ऋण चुकाना है। आप दो तरह से ऋण चुका सकते हैं । एक तो आप नियत समय आने पर ही कर्ज़ अदा करें, दूसरे नियत समय से पहले ही अदा कर दें। नियत समय पर कर्ज चुकाने में कोई विशेषता नहीं हुई मगर समय से पहले ही चुकाने में गौरव है और आनन्द है । इसी प्रकार कर्म, एक तो उदय की स्थिति पर भोगे जाते हैं और दूसरे स्थिति के पूर्व ही उदीरणा करके क्षय किये जाते हैं।
शास्त्रकारों का कथन है कि-समय पर कर्म भोगोगे; इसमें क्या विशेषता होगी? समय से पहल ही, उदय-श्रावलिका में लाकर उनका क्षय क्यों नहीं कर देते ? कर्मों के नाश होने के इन दोनों तरीकों में पर्याप्त अन्तर है। जो कर्म करोड़ों भव करने पर भी नहीं छूटते,वे कर्म धर्माग्नि, ध्यानाग्नि और तप की अग्नि में एक क्षण भर में भस्म किये जा सकते हैं। उदाहरण के लिए प्रदेशी राजा को देखिए । उसने ऐसे घोर कर्म वाँधे थे कि एक एक नरक में अनेक अनेक वार जाने पर भी सव कर्म पूरे न भोगे जावे । उसने निर्दयता से प्राणियों की हिंसा की थी। वह. अपने मत की परीक्षा के लिए चोरों को कोठी में बंद कर देता था और कोठी को चारों
और से ऐसी मूंद देताथा कि कहीं हवा का प्रवेश न हो सके। वह मानता था कि जीव और काय एक है, अलग नहीं। इसी चात को देखने के लिए वह ऐसा करता था । अगर जीव और :शरीर अलग-अलग होंगे तो चोर के मरने पर भी जीव दिखाई देगा। कोठी एकदम बंद है तो जीव निकलकर जायगा कहाँ ? कई दिनों बाद वह चोर को कोठी से बाहर निकालता । चोर