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श्रीभगवती सूत्र
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कुछ लोगों को यह भ्रम है कि आत्मा और कर्म का संबंध अनादि काल का है । अनादिकालीन होने से वह अनंत काल तक रहना चाहिए । इस प्रकार कमों का नाश हो ही नहीं सकता । यह छिछोरों की बात है। झानी जनों ने इस विषय में सत्य वस्तु-तत्त्व प्रकट किया है । ज्ञानियों का कथन है कि कर्म और आत्मा का संबंध प्रवाह की अपेक्षा श्रनादि होने पर भी व्यक्ति की अपेक्षा सादि है । अर्थात् प्रत्येक कर्म किसी न किसी समय श्रात्मा में बँधता है, श्रतएव सभी कर्म सादि हैं, फिर भी कर्म - सामान्य की परम्परा सदैव चालू है, इस दृष्टि से वह अनादि हैं ।
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प्रवाह या परम्परां किसे कहते हैं । मान लीजिए, श्राप यमुना के किनारे खड़े होकर उसकी धारा देख रहे हैं । धारा देखकर आप साधारणतया यह समझते हैं कि वह एक सी है - इसमें वही पहलेवाला पानी है. लेकिन वाल ऐसी नहीं है । धारा का जल प्रतिक्षण आगे-आगे बढ़ता जाता है । एक मिनिट पहले जो जल आपने देखा था, वह चला गया है और उसकी जगह दूसरा नया जल आ पहुँचा है । इस प्रकार पहले वाले जल का स्थान दूसरा जल ग्रहण करता चलता है । इसी कारण धारा टूटती नजर नहीं आती और ऐसा जान पड़ता है मानों वही जल मौजूद है । लेकिन जैसे पानी ऊपर से और न आता हो तो धारा खंडित हो जायगी उसी प्रकार नये कर्म न झावे तो कर्मों की परम्परा भी विच्छिन्न हो जायगी, तात्पर्य यह है कि प्रतिक्षण अपूर्व - अपूर्व कर्म श्राते रहते हैं, और इस प्रकार का कर्म प्रवाह अनादिकाल से चल रहा है ।
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