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________________ [ ३०७ ] चलमाणे चलिए 'उदीरिज्जमाणे उदीरिए ! अर्थात्-जो उदीरा जा रहा है वह उदीर्ण हुआ ? कर्म दो प्रकार से उदय में आते हैं। कोई कर्म अपनी स्थिति परिपक्व होने पर उदय में आता है और कोई कर्म उदीरणा से । किसी विशेष काल में उदय होने योग्य कर्म को, जीव अपने अध्यवसाय - विशेष से, स्थिति का परिपाक होने से पूर्व ही, उदयावलिका में खींच लाता है । इस प्रकार नियत समय से पहले ही प्रयत्न विशेष से किसी कर्म का उदय श्रावलिका में आ जाना 'उदीरणा' है। कर्म की उदीरणा में भी असंख्यात समय लगते हैं । परन्तु पहले समय में उदीरणा होने लगी तो 'उदीर्ण हुआ' कहना चाहिए। ऐसा न कहा जाय तो वही सब गड़बड़ी होगी, जिसका उल्लेख 'चलमा चलिए' के सम्वन्ध में किया जा चुका है। कई लोग कहते हैं कि कर्म जिस रूप में बँधे है, उसी रूप में भोगने पड़ते हैं । दूसरी तरह से उनका नाश नहीं हो सकता। लेकिन, ऐसा मान लेने पर तप आदि क्रियाएँ व्यर्थ हो जाएँगी । जब तप करने पर भी कर्म उदय में श्रावेगा और तप न करने पर भी उदय में आवेगा, तो फिर तप करने से क्या लाभ है ? श्रतएव यह कथन समीचीन नहीं है कि कर्म का नाश दूसरे प्रकार से नहीं हो सकता । स्थिति परिपक्व होने पर कर्म का उदय होना और हाय-हाय करके उन्हें भोगना यह तो अनादिकाल से चला आ रहा है । लेकिन कर्मों की उदीरणा करके उन्हें उदय - श्रावलिका में ले आने से फिर कर्म नहीं बँधते ।
SR No.010494
Book TitleBhagavati Sutra par Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherSadhumargi Jain Shravak Mandal Ratlam
Publication Year1947
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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