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प्रथम शतकः-द्वितीय उद्देशक
प्रश्नोत्थान
मूलपाठ रायगिहे नगरे समोसरणं । परिसा णिग्गया, जाव-एवं वयासी.. संस्कृत-छाया- राजगृहे नगरे समवसरणं । परिषद् निर्गता, . यावत्-एवमवादीत् 1, .. . ..
. मूलार्थ-राजगृह नगर में समवसरण हुआ । परिषद् निकली । यावत्-इस प्रकार फरमाया। .
व्याख्यान-श्रव भगवतीसूत्र के प्रथम शतक का दूसरा उद्देशक प्रारम्भ होता है। पहले उद्देशक के साथ दूसरे का सम्बन्ध बतलाते हुए कहा गया है कि पहले उद्देशक में