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उपसंहार व्याख्यान-भगवान् के वचन सुनकर गौतम स्वामी ने कहा-प्रभो! जैसा आप कहते हैं, वैसा ही है । श्राप अनन्त हैं और मैं तुच्छ हूँ, इसलिए मैं श्रायके वचनों पर विश्वास करता हूँ।
ऐसा कह कर गौतम स्वामी ने श्रमण भगवान महावीर स्वामी को वन्दना की, नमस्कार किया और तप तथा संयम में विचरने लगे।
यहाँ वन्दना -नमस्कार करने का उल्लेख इसलिए किया गया है कि प्रश्न पूछने से पहले और उत्तर सुनने के पश्चात् चन्दना करना विनयं प्रदर्शित करना है । विना विनय के ज्ञान प्राप्त नहीं होता। अतः ज्ञान प्राप्त करने में विनय की अत्यन्त आवश्यकता है।
यह भगवतीसूत्र के प्रथम शतक का प्रथम उद्देशक समाप्त होता है । मेरी समझ में जैसा आया, जैसा मैंने वर्णन किया।इस वर्णन म जो वातें शास्त्र के अनुकूल हों, उन्हें ग्रहण कीजिए और जो प्रतिकूल कही गई हों उन्हें त्याग दीजिए। .. सेवं भंते सेवं भंते, गौतम बोले सइ। .
श्री वीरजी का वचनां में सन्देह नई ॥