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________________ श्रीभगवती सूत्र [५८२] चलन आदि धौं वाले कर्म का निरूपण किया गया है। दूसरे में, पहले उद्देशक के बचे हुए अंश का ही वर्णन किया जायगा उद्देशकों के नाम की जो संग्रह गाथा शतक के प्रारम्भ में कही गई है, उसमें यह बतलाया है कि द्वितीय उद्देशक में दुःख सम्बन्धी प्रश्न हैं । दुःख के इस कथन की प्रस्तावना के लिए : यहाँ दुःख का ही पहले पहले वर्णन किया जाता है। दूसरे उद्देशक के आरम्भ में राजगृह नगर और गुणशील नामक उद्यान आदि का वर्णन प्रथम उद्देशक के समान ही समझ लेना चाहिए । गौतम स्वामी भगवान् को वन्दना करके प्रश्न पूछते हैं, यहाँ तक का समस्त पाठ पहले उद्देशक के समान ही यहाँ उच्चारण करना चाहिए । इस प्रकार का उपोद्घात प्रत्येक उद्देशक के प्रारम्भ में किया जाता है । इसका कारण यह है कि जहाँ वचन होंगे -वहाँ वक्ता भी अवश्य होगा। और जब वक्ता है तो वह किसी स्थान पर स्थित होकर ही भाषण करेगा । अतएव इस उपोद्घात में स्थान का, समय का और वका का सामान्य परिचय दे दिया जाता है । मीमांसक मत वाले वेद को अपौरुषेय मानते हैं। मगर जैनसिद्धान्त, शास्त्र की अपौरुप्यता स्वीकार नहीं करता। कोई भी शास्त्र अपौरुषेय नहीं हो सकता। यह प्रकट करने के लिए भी प्रत्येक उद्देशक के प्रारम्भ में वक्ता, स्थान और समय का उल्लेख कर दिया गया है।
SR No.010494
Book TitleBhagavati Sutra par Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherSadhumargi Jain Shravak Mandal Ratlam
Publication Year1947
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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