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________________ [५७७] व्यन्तरों के स्थान जो विजली प्रकाश देती है, उसकी उत्पन्न होती हुई गैस दुर्गन्ध देती है, ऐसा सुना जाता है। लेकिन वही गैस प्रकाश देती है। अगर उस दुर्गन्ध से घृणा की जाय तो विजली का प्रकाश नहीं हो सकता। आप कदाचित् घृणा करें भी, मगर जो आदमी उस गैस को त्पन्न करता है वह यदि घृणा करने लगे तो किसी को प्रकाश न मिले । मतलब यह है कि उस दुर्गन्धयुक्त गैस से विजली का उज्ज्वल प्रकाश निकलता है। इसी प्रकार भूख प्यास सहने वाले और अकाम निर्जरा करने वाले के लिए, लोग कहते हैं, यह वृथा कायक्लेश कर रहा है, मगर ज्ञानी पुरुष जानते हैं कि यह कष्ट नहीं, गैस है जिस ‘से वाण व्यन्तर का विद्युत्प्रकाश उत्पन्न होगा। - बिजली पर पतंग मँडराते हैं और अपनी जान दे देते हैं। यही वात आप के लिए भी है, श्राप विजली को देखते हैं, पर यह नहीं देंखेत कि यह प्रकाश किसके अधीन है ? आप देवलोक के सुख-को तो देखते हैं, परन्तु यह नहीं देखते कि यह सुख निकला कहां से है ? देवलोक के सुख के उद्गम को न देखकर, केवल सुख को ही देखना विजली पर पड़ने के समान है। जैसे जेल से डरने वाला स्वराज्य प्राप्त नहीं कर सकता और जैसे आँच और धुएँ से डरने वाली महिला रसोई नहीं बना सकती, उसी प्रकार कष्टों से घबराने वाला देवलोक के सुख नहीं पा सकता। यह ठीक है कि अज्ञानपूर्वक सहन किया गया कष्ट मोक्ष का कारण नहीं है, मगर वह भी सर्वथा निष्फल नहीं होता। उस कष्ट का फल यह देवलोक है। मगर यह ध्यान रखना चाहिए कि केवल कष्ट सहने मात्र
SR No.010494
Book TitleBhagavati Sutra par Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherSadhumargi Jain Shravak Mandal Ratlam
Publication Year1947
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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