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________________ श्रीभगवती सूत्र [५७६ । चौवीसों तीर्थंकरों को वृक्ष के नीचे ही केवलज्ञान हुआ था। किसी तीर्थंकर को वट वृक्ष के नीचे केवलझान हुआ, किसी को खिरनी.के नीचे और किसी को शाल्मली वृक्ष के नीचे। किसी भी तीर्थंकर को किसी महल में विराजमान होने पर केवलज्ञान हुश्रा, ऐसा कहीं देखने में नहीं आता। . इस कथन का आशय यह नहीं है कि वृक्ष के नीचे ही केवलज्ञान हो सकता है और अन्यत्र नहीं हो सकता। यह कथन उन मर्यादा पुरुप तीर्थकर भगवान् के लिए है। उन्हें वृक्ष के सिवा दूसरी जगह केवलज्ञान नहीं होता। वाण -व्यन्तर देवों के देवलोक में वह मिथ्यादृष्टि कम से कम दस हजार वर्ष की स्थिति भोगता है और अधिक से अधिक एक पल्योपम की। वाण-व्यन्तरों का वह स्थान देवों और देवियों से व्याप्त होता है । उस देवलोक में वहुत-से देव देवी शोभायमान होते हुए रहते हैं। पहले यह बतलाया गया है कि अकाम निर्जरा करने वाला, अकाम क्षुधा, तृषा, ब्रह्मचर्य आदि का पालन करता है । इस प्रकार एक ओर रूखा जीवन व्यतीत करने का चित्र है और दूसरी ओर वाणं-व्यन्तरों के देवलोक का चित्र है। तात्पर्य यह है कि अकाम क्षुधा, तृषा आदि सहन करने का यह परिणाम निकला है । यद्यपि मिथ्यादृष्टि ने जो कष्ट सहे हैं, वह अज्ञानपूर्वक सहे हैं, ज्ञानपूर्वक नहीं, तथापि भूखप्यास को सहन करने से उसे देवलोक की प्राप्ति हुई है। . आप प्रकाश देते हुए बिजली के लट्ट को देखते हैं।
SR No.010494
Book TitleBhagavati Sutra par Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherSadhumargi Jain Shravak Mandal Ratlam
Publication Year1947
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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