SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 250
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [५७५] व्यन्तरों के स्थान और कोई वस्तु नहीं है । साथ ही वन के समान जीवन को आनन्दमय बनाने वाला और कोई नहीं है। • हवा प्रायः शहर की ही गंदी होती है। ग्राम की हवा को भी नगर वाले ही दूषित बनाते हैं। नगर की अपेक्षा प्राम कम गंदे होते हैं । आज तो ग्रामीणों ने भी अपना जीवन-क्रम बदल-सा दिया है और ग्रामों में भी गंदगी का प्रवेश हो गया है। मगर कभी आपने यह सुना है कि अमुक वन की हवा बिगड़ी है और नगर की हवा नहीं बिगड़ी है ? अगर कभी किसी. वन की वायु में किसी प्रकार का विकार हुश्रा भी हो तो वह नगर की ही देन होगी। । .. एक भाई प्रश्न करते हैं कि भगवान् का समवसरण कृत्रिम है या अकृत्रिम ? इसका उत्तर यह है कि उववाइसूत्र में समवमरण का विस्तृत वर्णन है। समवसरण में देव कृत्रिमता प्रकट करते हैं, अन्यथा समवसरण अकृत्रिम ही हैं। ग्रंथों में कहा गया है कि देवकृत तीर्थंकरों का समवसरण भी दो ही वार होता है-एक बार केवलज्ञान उत्पन्न होने के समय और दूसरी बार निर्वाण के लमय । जैसी कृत्रिमता इन समयों पर देव प्रकट करते हैं, उस कृत्रिमता के विना समवसरण झुड़ता ही न हो, सो बात नहीं है। यह आवश्यक नहीं कि अब तांये के कोट आदि हों तभी समवसरण होता हो। उववाईसूत्र में वर्णन है कि भगवान् अमुक उद्यान में विराज. मान हुप और धर्म कथा कही । समवसरण का सामान्य अर्थ है, उस विशद परिषद् का जुड़ना, जिसमें धर्म का उपदेश तीर्थकर ने किया हो। ' . ' भगवान् सदैव अकृत्रिम अवस्था में ही रहते थे !
SR No.010494
Book TitleBhagavati Sutra par Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherSadhumargi Jain Shravak Mandal Ratlam
Publication Year1947
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy