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श्रीभगवती सूत्र
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हुआ कि वे वन उजड़ गये । श्राज वह घर बड़ा माना जाता है, जिसके यहाँ कोयले जलते हैं। लकड़ी जलने से घर काला हो जाता है, कोयला जलने से काला नहीं होता । कोयलों के लिए हरे-हरे वृक्ष काट लिये जाते हैं, क्योंकि कोयले अधसूखी लकड़ी के बनते हैं । मनुष्य स्वास्थ्यदायक वृक्षों को कटवा डालता है और हवा को रोकने तथा दूषित करने वाले महल खड़ा करता है ।
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कृत्रिमता स्वयं एक प्रकार का विकार है । श्रतएव मनुष्य कृत्रिमता के साथ जितना अधिक सम्पर्क स्थापित करेगा, उतने ही अधिक विकार उसमें उत्पन्न होते जाएँगे । इसके विपरीत मनुष्य-जीवन में जितनी अकृत्रिमता होगी, उतना ही वह अधिक श्रानन्दमय होगा । पहले मुनि-महात्मा / वन में ही ठहरते थे । प्राम और नगर में सिर्फ भिक्षा के लिए जाते थे, रहते वन में ही थे। वन में उन्हें अद्भुत शान्ति मिलती थी । इसी कारण उनके मस्तिष्क में अपूर्व, उत्तम और हितकर विचार प्रादुर्भूत होते थे ।
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प्रश्न हो सकता है कि भगवान् वीतराग थे और गातम स्वामी भी केवलज्ञानी के समान थे, उन्होंने वन की सुन्दरता क्यों कही सुनी ? उन्होंने संसार की बातें क्यों कहीं ? गौतम स्वामी ने ऐसा प्रश्न क्यों किया ? और भगवान् ने इस प्रकार की उपमाओं से भरा हुआ उत्तर क्यों दिया ?
भगवान् ने मोह उत्पन्न करने के लिए यह उत्तर नहीं दिया है । उन्होंने अनन्त करुणा से प्रेरित होकर यह बताया है कि मनुष्यो ! बनावटी चीज़ के भे. गोपभोग में उलझ कर प्राकृतिक पदार्थों को मत भूलो प्रकृति के समान सुखदायक
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