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व्यन्तरों के स्थान शरण लेता है ? शहर में जब प्लेग का प्रकोप होता है, तव लोग कहाँ जाते हैं ?
“जंगलों को।'
उस समय घर में रहने के लिए आपको कुछ रकम दी जाय तो श्राप घर में रहना पसंद करेंगे?
'नहीं!'
और अगर जंगल में रहने की फीस लीजाय, तो आप देंगे या नहीं?
'अवश्य देंगे।'
श्राप लोग.वनावटी के चक्कर में पड़कर अकृत्रिम को भूल रहे हैं, लेकिन प्राकृतिक रचना ही वास्तव में सब प्रकार से सुन्दर ओर लाभदायक है।
वाह्य सुख की अपेक्षा से व्यन्तर देव सुखी है, क्योंकि उन्हें रोग-शोक नहीं होता। मनुष्य लोक के जीव इसलिए सुखी नहीं हैं कि मनुष्य प्रकृति के विरोधी हैं। प्रकृति से विरोध करने वाले को सुख कहाँ ! सुख देने वाली प्रकृति है, मगर वह तभी सुख देती है, जब उसका विरोधन किया जाय ।
भगवान् ने जिस समय वाण-व्यन्तर के देवलोक से इन वनों की उपमा दी, उस समय भारत में खूब वन थे।
और उन वनों में बनुष्य उसी प्रकार विचरते थे, जैसे वाणव्यन्तर अपने देवलोक में विचरते हैं। लेकिन धीरे-धीरे भारतीयजन कृत्रिमता के मोह में फँस गये। परिणाम यह