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________________ श्रीभगवती सूत्र [६७० वाण व्यन्तरों के स्थान का वर्णन करने के लिए भगवान् ने मनुष्यलोक के वृत्तों के वनों का उदाहरण दिया है। यह आशंका की जा सकती है कि मनुष्यलोक में महल आदि - उत्तम स्थान बहुत से हैं, उनकी उपमा न देकर सिर्फ वनों की उपमा क्यों दी है ? वास्तव में वन की उपमा देने में प्रकृति सम्बन्धी बहुत विचार गर्भित हैं। अाजकल लोग प्रकृति से बहुत दूर हट गये हैं, इसलिए उन्हें कृत्रिम वस्तु बहुत प्रिय लगती है। लेकिन जिसने प्रकृति का अभ्यास किया है, जिसने प्रकृति के लौन्दर्य की अनुभूति की है, वही प्राकृतिक और कृत्रिम वस्तुओं का भलीभाँति अन्तर समझ सकता है। एक आदमी घाम से । व्याकुल और थका हुआ है। उसे एक ओर कलकल करता.. हुभा निर्भर और उसी के किनारे एक सुन्दर सघन छायादार' वृक्ष मिलता है और दूसरी ओर राजमहल वह किले- पसंद करेगा? 'वृक्ष की छाया को!" · महल के लोभी को चाहे महल प्रिय लगे, लेकिन थके हुए निर्लोभ पंथिक को तो वृक्ष की छाया ही अधिक प्रिय लगेगी । थके हुए को वृक्ष की गोद में जो आनन्द प्राप्त होगा, वह महल की कैद में नहीं हो सकता। ( वृक्ष की छाया में आनन्द प्राप्त होने का एक कारण और भी है। मनुष्य कारवानिक वायु छोड़ता है और वृक्ष उसे ग्रहण करके उसके वदले आक्सीजन वायु छोड़ता है। वृत्त के लिये कारवॉनिक वायु पथ्य है और मनुष्य के लिए
SR No.010494
Book TitleBhagavati Sutra par Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherSadhumargi Jain Shravak Mandal Ratlam
Publication Year1947
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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