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________________ [५६३] . संवृत अनगार आश्रम---जिल स्थान पर कंदमूल, फल, फूल खाने चाले तापस रहते हों, वह आश्रम कहलातर है।। - सन्निवेश--जहाँ दूध, दही, बेचने वाले लोग रहते हो, वह सन्निवेश कहलाता है। उसे घोष भी कहते हैं। . भगवान् कहते हैं कि इन स्थानों में से किसी भी स्थान में रहता हो, मगर जो अकास विजय करता है, वह देव होता है। अकाम निर्जरा का साधारण अर्थ है-विना इच्छा के लिर्जरर करना-अर्थात् भूखों, प्यासों मरना। लेकिन यहाँ यह अर्थ संगत नहीं है। मोक्ष प्राप्ति के योग्य निर्जरा की अभिलाषा नहीं होना अकाम निर्जरा है। और मोक्ष प्राप्ति की कामना से जो निर्जरा की जाती है, वह सकाम निर्जरा कहलाती है। मुझे स्वर्ग प्राप्त हो जाय, या मेरा अमुक लौकिक कार्य सिद्ध हो जाय, इस भावना से भूखा रहना, प्यासा रहना, कष्ट भोगना, यह सव सकाम निर्जरा नहीं है। अभिलाषा किये बिना भी फल की प्राप्ति हाती है, अतएव अभिलाषा करने की आवश्यकता नहीं है। यही नहीं, परन् अभिलाषा न करने से हजारगुना अधिक फल होता है। अतएव चाह करना, फल में न्यूनता उत्पन्न कर लेना है। हे गौतम! असंयमी, अविरत और मिथ्यादृष्टि कहीं भी रहता हो, अगर वह अकाम निर्जरा करता है; अन्न के अभाव में नहीं वरन् अन्न होते हुए भूखा रहता है, वह देवयोनि प्राप्त करता है। . अज्ञानपूर्वक की जाने वाली निर्जरा अकामनिर्जरा है और ज्ञानपूर्वक की जाने वाली सकामनिर्जरा है।
SR No.010494
Book TitleBhagavati Sutra par Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherSadhumargi Jain Shravak Mandal Ratlam
Publication Year1947
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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