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श्रीभगवती सूत्र
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जिसे सम्यग्ज्ञान प्राप्त नहीं हुआ, वह पूर्वोक्त स्थानों में से किसी में भी रहता हुआ मिध्यादृष्टि पुरुष निर्जरा श्रादि की अभिलाषा से रहित काम तृषा सहन कर रहा है । वह भूखा रहता है, मगर अकाम अर्थात् धर्म भावना से नहीं । स्त्रीसमागम नहीं करता है, मगर यों ही बिना किसी प्रयोजन के । ब्रह्मचर्य पालने का उसका अभिप्राय कुछ नहीं है । वह धर्म समझकर ब्रह्मचर्य का पालन नहीं करता, मगर स्त्री होते हुए भी लज्जा आदि के कारण समागम नहीं करता और ब्रह्मचर्य रखता है । यह काम ब्रह्मचर्य है । वह रात्रि में ऐसे स्थान पर रहता है जहाँ स्त्री से भेंट न हो, वह श्रकाम ब्रह्मचर्यवास कहलाता है ।
इस काम ब्रह्मचर्य के लिए या यों ही स्नान नहीं' करता है, स्वेद ( पसीना ) जल्ल, मल आदि सहन करता है । यह सब अकामनिर्जरा है ।
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स्वेद का अर्थ है - पसीना । पसीने पर जो रज लग जाती है वह जल्ल कहलाती है। जल्ल का जम जाना मल है । इन सब कष्टों को सहन करना मगर धर्मभाव से निर्जरा के लिए नहीं - वह श्रकामनिर्जरा है। इस प्रकार थोड़े काल तक या बहुत काल तक वह आत्मा को क्लेश पहुँचाता है, फिर भी उसके इन कार्यों से मोक्ष प्राप्त नहीं होता । इस अकामनिर्जरा के कारण वह वान-व्यन्तर आदि देव के भव में जाकर जन्म लेगा ।
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यहाँ एक मिध्यादृष्टि के विषय में ही प्रश्नोत्तर है। उववाई सूत्र में विस्तारपूर्वक वर्णन है। यहाँ सामान्य रूप से, निर्जरा की इच्छा न रखने वाले और दुःख पड़ने पर अच्छे