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श्री भगवती सूत्र
[५६०] देवता होता है ? 'यहाँ से मरकर' का अर्थ होगा-जहाँ यह प्ररूपणा की जा रही है, वहाँ से चलकर । यह प्ररूपणा मध्यलोक में की जा रही है और मध्यलोक में प्रायः मनुष्यतिर्यंच होते हैं । इसलिए यहाँ से' का अर्थ मनुष्यगति से और तिर्यंचगति से, समझना चाहिए । तात्पर्य यह कि ऐसा जीव मनुष्यगति और तिर्यंचगति से च्युत हो कर क्या देवता होता है? .
गौतम स्वामी के प्रश्न के उत्तर में भगवान कहते हैंगौतम ! ऐसे जीव कोई कोई देवता होते हैं और कोई-कोई देवता नहीं होते।
___यहाँ तृष्णा-विजय की बात कही है। लाधु अथवा श्रावक होकर संयम और व्रत जैसी कल्याणकारी वस्तु के बदले में तुच्छ वस्तु की अभिलाषा करना उचित नहीं है। देवयोनि मिलना बड़ी बात नहीं है। वह तो मिथ्यादृष्टि को भी मिल जाती है। अतएव इस प्रश्नोत्तर द्वारा यह भी सूचित किया गया है कि स्वर्ग की कामना मत करो। स्वर्ग तो मिथ्यादृष्टि और पशु भी पा सकते हैं । इस कथन से यह भी स्पष्ट हो जाता है कि जब देवलोक का ऐश्वर्य भी. तुच्छ है तो मनुष्यलोक का वैभव कब उत्कृष्ट होगा? - गौतम खामी फिर प्रश्न करते हैं जिनका मिथ्यात्व नहीं छूटा है, उन असंयतियों में से कोई देवता होता है और कोई नहीं, इसका क्या कारण है?
इस प्रश्न के उत्तर में भगवान् कहते हैं। इस उत्तर में अनेक स्थानों के नाम आयें हैं । उनका अर्थ यह हैं: