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________________ [५५६] संवृत अनगार. अर्थ है, जिसने संयम धारण नहीं किया और जिसने तपविशेष को नहीं अपनाया है। यहाँ शंका हो सकती है कि जब असंयमी कह दिया था, तब अविरत कहने की क्या आवश्यकता थी? इसका उत्तर यह है कि वर्तमान काल के पाप का निरोध न करने वाले का बोध कराने के लिए अविरत शब्द का प्रयोग किया है। एक प्राचार्य इन शब्दों का अर्थ दूसरा लेते हैं । उनके मत के अनुमार मरणकाल से पहले तप श्रादि द्वारा जिसने पाप का नाश न किया हो, वह अप्रतिहत पापकर्मा कहलाता है। और मृत्युकाल आजाने पर भी पाप का नाश न करने वाला अप्रत्याख्यातपापकर्मा है । तात्पर्य यह है कि जिसने न मृत्यु से पहले पापों का त्याग किया, न मृत्यु आने पर ही त्याग किया, वह अप्रतिहतप्रत्याख्यातपापकर्मा कहलाता है। ' अप्रतिहतप्रत्याख्यातपापकर्मा का एक अर्थ और भी लिया जाता है । जिसने सम्यग्दर्शन की प्राप्ति करके पापकर्मों को नष्ट नहीं किया वह अप्रतिहतपापकर्मा कहलाता है । शुद्ध श्रद्धा धारण करना, पूर्व के पापों का नाश करना कहलाता है। और सम्यग्दर्शन प्राप्त हो जाने पर सर्वचिरति श्रादि अंगीकार करके पाप-क्रमों का निरोध न करने वाला अप्रत्याख्यातपायकर्मा कहलाता है । इस प्रकार जिसने न सम्यक् श्रद्धा धारण की और न व्रत धारण किये वह अप्रतिहत-प्रत्याख्यातपापकर्मा कहलाता है। गौतम स्वामी पूछते है-एसा जीव यहाँ से मरकर
SR No.010494
Book TitleBhagavati Sutra par Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherSadhumargi Jain Shravak Mandal Ratlam
Publication Year1947
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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