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________________ श्रीभगवती सूत्र [ ५५२ ] वाला मुनि संवृत अनगार कहलाता है। गौतम स्वामी पूछते हैं - भगवन् ! संवृत अनगार सिद्ध, बुद्ध, मुक्त होता है और निर्वाण पाता है ? गौतम स्वामी के इस प्रश्न के उत्तर में भगवान् ने कहा- हाँ गौतम ! पाता है । संवृत अनगार छठे गुणस्थान से चौदहवें गुणस्थान तक होते हैं। छठे गुणस्थानवत्ती प्रमत्त और सातवें से चौदहव गुणस्थान तक के श्रप्रमत्त होते हैं । यहाँ किस गुणस्थानवती लंवृत अनगार से प्रयोजन है ? इस सम्बन्ध में कहा गया है-संवृत अनगार चरमशरीरी और श्रचरमशरीरी के भेद से दो प्रकार के हैं । जो दूसरा शरीर धारण नहीं करेंगे वह चरमशरीरी कहलाते हैं । जिन्हें दूसरी देह धारण करनी पड़ेगी वह अचरमशरीरी हैं । गौतम स्वामी और भगवान् के यह प्रश्नोत्तर चरमशरीरी की अपेक्षा से हैं । श्रचरमशरीरी के विषय में नहीं हैं । इस के लिए एक सूत्र की दो गति करनी चाहिए- एक परम्परा और दूसरी साक्षात् । अर्थात् साक्षात् - इसी भव से सिद्धि होगी और परम्परा से अगले किसी भव में सिद्धि प्राप्त होगी चरमशरीरी इसी भव से मोक्ष जाएँगे अतएव यह सूत्र उन पर साक्षात् रूप से लागू होता है । अचरमशरीरी सात श्राठ भव में मोक्ष जाएँगे, अतएव उनके लिए परम्परा ले सिद्धि • होगी, ऐसा समझना चाहिए । इस समाधान से एक प्रश्न नया उपस्थित होता है । वह यह कि परम्परा से तो शुक्लपक्षी असंवृत अनगार भी मोक्ष प्राप्त करेंगे। फिर संत और असंवृत अनगार का भेद करने से क्या लाभ है ?
SR No.010494
Book TitleBhagavati Sutra par Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherSadhumargi Jain Shravak Mandal Ratlam
Publication Year1947
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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