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संवृत अनगार
मूलार्थ - प्रश्न - भगवन् ! संवृत अनगार सिद्ध होता है ? यावत् सव दुःखों का अन्त करता है ?
उत्तर - हाँ, सिद्ध होता है, यावत् सब दुःखों का करता है ।
प्रश्न -सो किस हेतु से भगवन् !
उत्तर - गौतम ! संवृत अनगार आयु को छोड़ कर सात गाढ़ी बांधी हुई कर्म - प्रकृतियों को शिथिल बंध वाली " करता है, दर्घिकालीन स्थिति वाली प्रकृतियों को अल्पकालीन स्थिति वाली बनाता है, तीव्र फल देने वाली प्रकृतियों को मन्द फल देने वाली बनाता है, बहुत प्रदेश बाली प्रकृतियों को अल्प प्रदेश बाली बनाता है । आयुष्य कर्म का बंध नहीं करता है । तथा सातावेदनीय कर्म का बार-बार उपचय नहीं करता है । इस लिए अनादि, अनंत लंबे मार्ग वाले, चातुरन्तक चार प्रकार की गति वाले - संसार रूपी वन का उल्लंघन करता है । इस लिए हे गौतम ! संवृत अनगार सिद्ध होता है यावत् सत्र दुःखों का अन्त करता है, ऐसा कहा जाता है ।
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व्याख्यान - असंवृत अनगार के विषय में कहा जा चुका है । प्रस्तुत प्रश्नोत्तर में संवृत अनगार की चर्चा की गई है । वद्वार का निरोध करके संवर की साधना करने