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________________ श्रीभगवती सूत्र [५४६] चतुर और करूणावान् वैद्य द्वारा प्रयुक्त चिकित्सा के समान मंगल-साधन करने वाला है। भगवान् कहते हैं-~गौतम! असंवृत अनगार अपार संसार रूपी अरण्य में भ्रमण करेगा । गौतम स्वामी ने भगवान् से पूछा था कि असंवृत अनगार क्या मोक्ष जाएगा? उसका उत्तर भगवान् ने दिया-नहीं, वह अपार संसार में भ्रमण करेगा। क्या गौतम स्वामी को यह मालूम नहीं था कि असाधु मोक्ष नहीं जाते ? अगर मालूम था तो भगवान् से उन्होंने किस लिए पूचा १ कुछ लोगों का कथन था कि चारित्र-भ्रष्ट भी मोक्ष जा सकता है। जो लोग चारित्र-भ्रष्ट । को भी मोक्ष मानते थे, उन्हें चारित्र का महत्त्व बताने के लिए, यह बात स्वयं न कह कर भगवान् के मुख से कहलाई है। अगर गौतम स्वामी स्वयं ही कह देते तो भी हमारे लिए यह वात मान्य ही होती, तथापि उसे विशेष प्रभाव शाली बनाने के लिए उन्होंने संपूर्ण-ज्ञानी भगवान् से कहलाना ही उचित समझा। असंवृत अनगार जिस संसार में भ्रमण करता है, उसके लिए भगवान् ने प्रणाइयं, अण्वयग्गं और दीहमद्धं श्रादि विशेषण लगाये हैं। इन विशेपणों का अर्थ क्या है, यह संक्षेप में वतलाया जाता है। पहला विषेशण 'श्रणाइयं' है। अणाइयं का अर्थ है अनादिकं अर्थात् जिसकी आदि न हो । दूसरा अर्थ हैअशातिर्क-जातिहीन अर्थात् जिसका कोई स्वजन नहीं रहता, ऐसे पापकर्म वाँधता है। तीसरा अर्थ है-ऋणातीतम् ।
SR No.010494
Book TitleBhagavati Sutra par Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherSadhumargi Jain Shravak Mandal Ratlam
Publication Year1947
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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