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________________ [ ५४५] . असंवृत अनगार कर लेती है और वह उसके अधीन होकर दुःखी वन जाता है। जूआ, वेश्या सेवन आदि दुर्व्यसनों में भी सुख की लालसा से ही प्रवृत्ति की जाती है, लेकिन जुआरियों और वेश्यागामियों का जीवन स्पष्ट बतलाता है कि वे किस बुरी तरह आपदानों में पड़कर घोर दुःख के भागी होते हैं । • उनकी विवेक हीन प्रवृत्ति सुख के बदले दुःख के पहाड़ उसके सिर पर पटक देती है । श्रतएव सुख की भ्रमणा में पड़कर दुःख के कारण भूत असंवृतपन को अंगीकार करना घोर अज्ञान है । उससे यत्न पूर्वक साधुओं को सदा बचते रहना चाहिए। यह वर्णन करके भगवान् ने अानव-द्वार की प्रवृत्ति से डराया है। क्या भगवान् डराते हैं ? वे अभयंकर होते हैं । वे भय को भंजन करते हैं। मगर मुनि के निमित्त से कोई भयभीत हो जाय तो मुनि को प्रायश्चित्त लगता है। फिर भगवान् ने क्यों डराया है ? यह प्रश्न किसी को उठ सकता है। मगर देखना यह चाहिए कि भगवान् का वास्तविक उद्देश्य क्या है ? भगवान् ने किन बातों से डराया है ? धर्म से डराने और पाप से डराने में बहुत अन्तर है । भगवान् ने यह सूत्र पाप से डराने के लिए कहे हैं, जिससे सामान्य लोग पाप से दूर रहें और अकल्याण से बच जाएँ । वस्तु के स्वरूप का यथातथ्य वर्णन कर देना दोष नहीं है और करुणा भाव से ऐसा करना महान् गुण है ! यह वर्णन असंवर से डराने वाला होते हुए भी सच्ची निर्भयता का कारण है, संसार के भयों से छुड़ाने वाला है, दुःखों से बचाने वाला है और परम कल्याण का कारण है । इस वर्णन का असली उद्देश्य अंसाधुता से बचाना है। श्रतएव यह दोषपूर्ण नहीं है, वरन्
SR No.010494
Book TitleBhagavati Sutra par Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherSadhumargi Jain Shravak Mandal Ratlam
Publication Year1947
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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