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________________ [५४१] असंवृत अनगार जन कर्म से प्राप्त होने वाले सुख को भी दुःख रूप ही मालते हैं। अगर ऐसा न माना जाय तो आत्मा का विकास नहीं दो संकंता और सहज-सिद्ध शाश्वत सुख की प्राप्ति भी नहीं हो सकती। गौतम स्वामी का प्रश्न है कि असंवृत अनगार क्या इस गति को प्राप्त करता है। इस प्रश्न के उत्तर में भगवान फर्माते हैं-हे गौतम! ऐसी बात नहीं है, अर्थात् असंवृत अनगार मुक्ति प्राप्त नहीं कर सकता। भगवान् का संक्षिप्त उत्तर सुनकर गौतम स्वामी फिर पूछते हैं:-प्रभो! असंवृत असनार मुक्ति क्यों प्राप्त नहीं कर सकते ! वह भी तो अनगार हुए हैं। भगवान् फर्माते हैंगौतम चाहा अनगारपन ही मोक्ष का कारण नहीं है । श्रानव का त्याग ही वास्तविक अनगारपन है और वही मोक्ष का हेतु है। केवल घर-द्वार का त्याग कर देने से ही कोई सच्चा अनगार नहीं हो जाता और न मोक्ष प्राप्त कर सकता है। है गौतम ! श्रनगार हो करके भी जो प्रालय को नहीं रोकता है, उसकी क्या स्थिति होती है, यह ध्यान पूर्वक सुन। वह असंवृत अनगार श्रायु कर्म के लिवार सात समों को पुष्ट करता है। भगवान ने यह उत्तर क्या दिया है, इस सम्बन्ध में टीकाकार कहते हैं-इस संबंध में आगे विचार किया जायगा। असंवृत अनगार की मोक्ष प्राप्ति अनेक दोप रूपी मुहरों से चूर्ण हो जाती है। अर्थात् असंवृत को मोक्ष मानने से अनेक प्रवल दोप पाते हैं। उन पर आगे प्रकाश डाला गया है।
SR No.010494
Book TitleBhagavati Sutra par Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherSadhumargi Jain Shravak Mandal Ratlam
Publication Year1947
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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