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________________ श्रीभगवती सूत्र [५४०] जाता है। दीपक तेज के परमाणुओं का समुदाय है। जब वह बुझता है तो तेज के परमाणु, अन्धकार के परमाणुओं के रूप में परिणत हो जाते हैं-सर्वथा नष्ट नहीं हो सकते । तेज और अन्धकार, दोनों ही पौद्गलिक हैं और उनमें यह अवस्था-भेद होता रहता है। अतएव दीपक, द्रव्य कप से कायम रहता है। . इस विषय का विस्तारपूर्वक विचार न्यायशास्त्र में किया गया है । वह जरा गहन विचार है, अतएव यहाँ उसे छोड़ देते हैं । तात्पर्य यह है कि जैसे दीपक घुझ जाने पर भी सर्वथा नष्ट नहीं होता-तामस परमाणुओं के रूप में पलट जाता है और द्रव्य रूप से विद्यमान रहता है, उसी प्रकार मुक्त जीव भी, द्रव्य दृष्टि से विद्यमान.रहता है। उसकी पहले की अवस्था बदलती है, नवीन अवस्था उत्पन्न होती है, मगर द्रव्य से प्रात्मा नष्ट नहीं होता। सर्वथा नए नय रूप से विद्यमान रहता है ।ता है, मगर जिस जीव ने चरम भव प्राप्त किया, केवलज्ञान भी पा लिया,जो भवोपनाही कर्मों को क्षीण कर रहा है, वही जीव अपने चरम भवके अन्त में, जब सव कर्म-अंशों को क्षय कर चुकता है, तव उसके समस्त दुःखों का अन्त होता है। दुःखों का सर्वथा अन्त होने पर शुद्ध सुख ही सुख शेष रह जाता है। - यहाँ यह स्मरण रखना चाहिए कि वास्तव में कर्म ही दाख है। वह कर्म भले ही उच्च गति के कारण हो, लेकिन हैं दुःख रूप ही । लव कर्मों से मुक्त होना ही सव दुःखों का अन्त करना कहलाता है । कर्म की उपाधि से मिलने वाला सख वास्तविक रूप में दुःख ही है। कर्म के उदय से प्राप्त होने वाले दुःख को तो सभी दुःख मानते हैं, मगर ज्ञानी.
SR No.010494
Book TitleBhagavati Sutra par Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherSadhumargi Jain Shravak Mandal Ratlam
Publication Year1947
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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