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ज्ञानादि-विषयक प्रश्नोत्तर प्रश्न होता है कि अगर इस भव का चारित्र परभव में साथ नहीं जाता तो न सही, परभव में नया चारित्र उत्पन्न होता है या नहीं ? इसका उत्तर यह है कि मुनि सर्वचारित्री हैं और श्रावक देशचारित्री हैं। इस जन्म के पश्चात् यह दोनों ही देवगति में जाते हैं और देवगति में चारित्र का प्रभाव है। श्रतः परभव में चारित्र उत्पन्न नहीं होता।
जो साधु मोक्ष जाते हैं, उनमें भी चारित्र की उत्पत्ति असंभव है, क्योंकि कर्मों का क्षय करने के लिए ही चारित्र फा अनुष्ठान किया जाता है और कर्मों का क्षय हो जाने पर ही मोक्ष प्राप्त होता है, इसलिए मोक्ष में चारित्र की कोई उपयोगिता ही नहीं है । चारित्र धारण करते समय जीवनपर्यन्त की प्रतिक्षा ली थी, वह पूर्ण हो गई और मोक्ष में नया चारित्र उत्पन्न नहीं होता। इस प्रकार मोक्ष में भी चारित्र नहीं है। यहाँ स्वरूप-रमण रूप चारित्र का प्रहण नहीं किया है, मगर अनुष्ठान रूप-क्रियास्वरूप-चारित्र लिया गया है।
शंका-चारित्रमोहनीय कर्म के क्षय से उत्पन्न होने वाला चारित्र मोक्ष में क्यों नहीं है ?
समाधान-इस शंका का समाधान पहले ही हो गया है। अनुष्ठानरूप चारित्र की मर्यादा पूर्ण होगई,अतएव वह मोक्ष में नहीं रहा। हाँ, श्रात्मा का सत् चित्-आनन्द रूप सहज चारित्र मोक्ष में भी विद्यमान रहता है।
इसके अतिरिक्त, क्रिया शरीर से होती है और सिद्ध शरीर-रहित होते हैं। अतएव सिद्ध भगवान् न चारित्री हैं, न' अचारित्री ही कहे जा सकते हैं । अवत का अभाव होने से उन्हें प्रचारित्री नहीं कहा जा सकता।