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श्रीभगवती सूत्र
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उत्पन्न करने में जो काल लगता है, उसके तीन स्थूल विभाग किये जा सकते हैं-प्रथम प्रारंभकाल, दूसरा मध्यकाल और तीसरा अंतिमकाल ! अगर कपड़े के प्रारंभकाल, में उस उत्पन्न हुश्रा न माना जायगा तो मध्यकाल और अंतिमकाल में उत्पन्न हुया क्यों माना जायगा? तीनों काल समान है
और तीनों कालों में वस्त्र उत्पन्न होता है-किसी एक काल में नहीं । जैसे प्रारंभकाल में कपड़ा वना, उसी प्रकार मध्य. काल में भी और उसी प्रकार अतिमकाल में भी। फिर फ्या कारण है जिससे प्रारंभ और मध्य के काल में कपड़े को उत्पन्न हुश्रा न मानकर अतिम काल में ही उत्पन्न हुआ माना जाय?
प्रारम्भकाल में, एक तार डालने पर कपड़े का एक अंश उत्पन्न हुआ है या नहीं ? अगर यह कहा जाय कि एक अंश भी उत्पन्न नहीं हुआ, तो इस का अर्थ यह हुआ कि इस प्रकार सारा समय समाप्त हो गया और वस्त्र उत्पन्न नहीं हुआ। क्योंकि जैसे प्रारम्भ काल में उत्पन्न कपड़े के अंश को अनुत्पन्न माना जाता है, उसी प्रकार मध्यकाल में भी अनुत्पन्न मानना होगा और अन्तिम काल में भी एक अंश ही उत्पन्न होता है, इसलिए उस समय में भी वन का उत्पन्न होना नहीं माना जा सकेगा । ऐसी स्थिति में वस्त्रोत्पादन की सम्पूर्ण क्रिया और सम्पूर्ण समय व्यर्थ हो जायगा। इस दोष से बचने के लिए यह मानना ही उचित है कि
आरम्भ-काल में भी अंशतः वस्त्र की उत्पत्ति हुई है। .. तात्पर्य यह है कि जैसे एक तार पड़ जाने से ही वस्त्र का उत्पन्न होना मानना युक्ति संगत है, उसी प्रकार कर्मों