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चलमाणे चलिए ही क्यों किया? इस प्रश्न को हल करने से पूर्व हमें यह देखना चाहिए कि कर्म बंध का नाश क्रमशः होता है या एक साथं?
प्रत्येक कार्य में क्रम देखा जाता है। एक सड़े-गले कपड़े को फाड़ने में भी पहले और पीछे के तार टूटने का क्रम है। कपड़े के तमाम तार एक साथ नहीं टूटते। इस प्रकार संसार में किसी भी कार्य को लीजिए, उसके सम्पन्न होने में क्रम अवश्य दिखलाई पड़ेगा। जो सूक्ष्म दृष्टि से कार्य के क्रम को समझ लेगा वह गड़बड़ में नहीं पड़ेगा । जो मनुष्य बारीक नज़र से किसी कार्य के क्रम को नहीं समझेगा उसका गड़बड़ में पड़ जाना स्वाभाविक है।
, जैसे अन्यान्य कार्यक्रम से होते हैं उसी प्रकार कर्मबंध का नाश भी क्रम से होता है। इसमें संदेह के लिए अवकाश नहीं होना चाहिए । अव देखना सिर्फ यही है कि कर्मबंध का नाश किस क्रम से होता है ?
गौतम स्वामी ने भगवान महावीर से 'चलमाणे चलिए' से लगाकर 'निलरिजमाणे निजरिए' तक जो नौ प्रश्न किये हैं, उनमें कर्मबंध के नाश का क्रम सन्निविष्ट है। यह क्रम 'चलमाणे चलिए' से प्रारंभ होता है और 'निजरिज्जमाणे निज्जरिए' तक रहता है । इस अंतिम क्रम के पश्चात् कर्मवंध नहीं रहता। कर्मबंध के नष्ट होने में पहला क्रम 'चलमाणे चलिए ही है, इसी कारण यह प्रश्न सब से पहले उपस्थित किया गया है।
अव यह देखना चाहिए कि कर्मबंध के नाश का यह क्रम दिखाकर कौन-सी बात समझाई गई है, और इन पदों