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श्रीभगवती सूत्र
मोक्ष को वही जान सकता है जो इन शक्तियों के बन्धन को जानेगा । जो वन्धन को न जानेगा वह मोक्ष को क्या समझेगा ! जो कैद या परतंत्रता को जानेगा वही स्वतंत्रता चाहेगा | आज जो भारतीय परतंत्रता को जानते हैं वही स्वतंत्रता को चाहते हैं । जिन्हें परतंत्रता का ही ज्ञान नहीं है, वे स्वतंत्रता को नहीं समझ सकते । इसी प्रकार जोबन्धन को समझेगा, वहीं मोक्ष को भी समझेगा ।
वस्तु दो प्रकार से जानी जाती है - स्त्रपक्ष से और विपक्ष से । वस्तु के स्वरूप का ज्ञान होना स्वपक्ष से जानना है और उसके प्रतिपक्षी-विरोधी वस्तु को जानकर और फिर उससे व्यावृत्त करके मूल वस्तु को जानना विपक्ष से जानना है । इसे विधिमुख से और निषेधमुख से जानना भी कहा जा सकता है । प्रकाश को जानने के लिए अन्धकार को जान लेना भी आवश्यक होता है । इसी प्रकार धर्म को जानने के लिए अधर्म को और धर्म को जानने के लिए धर्म को जान लेना श्रावश्यक है | मोक्ष का प्रतिपक्ष बन्धन है । बन्धन है, इसी से मोक्ष भी है । बन्धन न होता तो मोक्ष भी न होता । मोक्ष को जानने के लिए बन्धन को जानना पड़ता है ।
श्रात्मा के साथ कर्मों का एकमेक हो जाना बन्ध है । जैसे दूध और पानी आपस में मिलकर एकमेक हो जाते हैं, उसी प्रकार कर्मप्रदेशों का आत्मप्रदेशों के साथ एकमेक हो जाना बन्धन है । और इस कर्मबन्ध का नाश हो जाना मोक्ष है । मोक्ष के लिए कर्मबन्धन काटना अनिवार्य है
मूल बात यह है कि गौतम स्वामी ने भगवान् महावीर से जो ना प्रश्न किये हैं, उनमें पहले 'चलमा चलिए ?' प्रश्न
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