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चलमाणे चलिए मिलेगा? कारण कार्य में व्याभिचार नहीं होना चाहिए । दोनों एक हो जावें। इस बात की शिक्षा देने वाला शास्त्र कहलाता है।
यहाँ कहा गया है कि ज्ञान, दर्शन और चारित्र साधन हैं और मोक्ष साध्य है। इन साधनों के द्वारा मोक्ष को साधा जाय तो कोई गड़बड़ न होगी।
हमारे आत्मा की शक्तियाँ बन्धन में हैं। उन शकियों पर आवरण पड़ा है। उस आवरण को हटाकर आत्मा की शक्तियों को प्रकट कर लेना ही मोक्ष है। आत्मा में सम्यग्ज्ञान, सम्यग्दर्शन और सम्यक् चारित्र की शक्ति स्वभावतः विद्यमान है, लेकिन वह दव रही है । रत्नत्रय की इस शक्ति में आत्मा की अन्य सव शक्तियों का समावेश हो जाता है ज्यों-ज्यों इस शक्ति का विकास होता है, मोक्ष समीप से समीपतर होता चला जाता है।
तात्पर्य यह है कि जो ज्ञान, दर्शन और चारित्र की आराधना करेगा वह मोक्ष की आराधना करेगा और जो मोक्ष की धाराधना करेगा वह इन साधनों को अपनावेगा। जैसे खीर को दूध, चावल और शक्कर कहो या दूध, चावल, शक्कर को खीर कहो; एक ही बात है। इसी प्रकार सम्यक्शानदर्शन-चारित्र की आराधना कहो या मोक्ष की आराधना कहो, दोनों एक ही बात है। .
. सम्यक् शान-दर्शन-चोरित्र मोक्ष के ही साधन हैं । यह साधन मोक्ष को ही सिद्ध करेंगे, और किसी कार्य को सिद्ध नहीं करेंगे । मोक्ष को साधने वाला इन तीनों कारणों को साधेगा और इन्हीं कारणों से मोक्ष सधेगा।