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श्रीभगवती सूत्र .
[२६६] शाक बनाने वाले को जानना चाहिए कि उसके लिए नमकमिर्च का उपयोग किया जाता है। ऐसा शान न होने से न खीर ही ठीक बन सकती है और न तरकारी ही। तात्पर्य यह है कि कार्य करने के लिए कर्ता को कारणों का यथावत् शान होना चाहिए । यथावत् शान के अभाव में कार्य यथावत् नहीं हो सकता।
___ यहाँ मोक्ष साध्य है और सम्यग्ज्ञान आदि उसके साधन हैं । साध्य और साधन के व्यभिचार को हटाकर, जो उनका जोड़ मिलाने की शिक्षा दे, वह शास्त्र कहलाता है । अच्छे पुरुष इस बात की शिक्षा चाहते हैं कि साध्य (मोक्ष)
और साधन (सम्यग्ज्ञान, सम्यग्दर्शन, सम्यक्-चारित्र) समान मिल जावें। इनमें व्यभिचार न.हो। इसलिए अच्छे पुरुष शास्त्रश्रवण की इच्छा रखते हैं ।
भगवती-सूत्र शास्त्र है। इस शास्त्र में कार्य-कारण का व्यभिचार न होने देने की शिक्षा दी गई है। साध्य और साधन में व्यभिचार न आने देने के लिए साध्य और साधन दोनों पर विचार करने की आवश्यकता है। अगर साध्य को भूलकर दूसरे ही कार्य के लिए साधन जुटाते रहे अथवा साधन को भूलकर साध्य दूसरे को ही मानते रहे तो कैसे कार्य होगा ? साध्य है खीर और वना डाली तरकारी । यहाँ साध्य का ज्ञान न होने से दूसरे ही कार्य के साधन जुटाये और उन साधनों से खीर की जगह तरकारी वन गई। भले ही तरकारी अच्छी वनी, मगर साध्य वह नहीं थी। साध्य तो खीर थी, जो बनी नहीं। इसी प्रकार साध्य बनाया जाय मोक्ष और साधन जुटाए जाएँ संसार के, तो मोक्ष कैसे