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________________ [३०५] चलमाणे चलिए की उदय-श्रावलिका असंख्यात समय वाली होने से, पहले समय में जो कर्म उदय-श्रावलिका में आने के लिए चले हैं, उन कर्मा की अपेक्षा उन्हें 'चला' कहा जाता है। अगर ऐसा न माना जायगा तो जो कर्म उदय-श्रावलिका में श्राने के लिये चले हैं, उन कर्मों की चलन-क्रिया वृथा हो जायगी। और यदि प्रथम समय में कर्मों का चलना नहीं माना जायगा तो फिर दूसरे, तीसरे आदि समयों में भी उनका चलना नहीं माना जा सकेगा। क्योंकि पहले समय में और पिछले समय में कोई अन्तर नहीं हैं। जैसे पहले समय में कुछ ही कर्म चलते हैं, सव नहीं, उसी प्रकार अन्तिम समय में भी कुछ ही कर्म चलते हैं-सब नहीं। (क्योंकि बहुत से कर्म पहले ही चल चुके हैं और जो थोड़े-से शेष रहे थे, वही अंतिम समय में चलते हैं) इस प्रकार सब समय समान है। किसी में कोई विशेषतानहीं है। अतःप्रथम समय में अगर कर्म चले ऐसा न माना जाय तो फिर किसी भी समय में उनका चलना न माना जा सकेगा। इसलिए जिस प्रकार अंतिम क्रिया से 'कर्म चले' मानते हो, उसी प्रकार प्रथम क्रिया से भी 'कर्म चलें ऐसा मानना चाहिए । यहाँ यह तर्क किया जा सकता है कि अगर एक तार डालने से वस्त्र उत्पन्न हो जाता है तो फिर दूसरे तार डालने की क्या आवश्यकता है ? इसका उत्तर यह है कि अगर अन्तिम तार डालने से ही वस्त्र उत्पन्न हुश्रा, ऐसा माना जाय तो (अंतिम तार को छोड़कर) पहले के तमाम तार सालने की क्या आवश्यकता है ? उन तारों का डालना निष्फल क्यों न जाय' असल बात यह है कि एक तार डालना एक समय की क्रिया हुई और दूसरा तार डालना दूसरे समय की
SR No.010494
Book TitleBhagavati Sutra par Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherSadhumargi Jain Shravak Mandal Ratlam
Publication Year1947
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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