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ज्ञानादि विषयक प्रश्नोत्तर
ही दिनों में बहुत-सा ज्ञान हो सकता है; लेकिन इस ओर कौन ध्यान देता है !
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इस प्रश्नोत्तर में उनका भी समाधान हो गया है, जो आत्मा को शानशून्य मानते हैं, अर्थात् जिनके मत के अनुसार मोक्ष में ज्ञान का प्रभाव हो जाता है ।
बौद्ध लोग श्रात्मा को क्षणिक मानते हैं । उनके मत के अनुसार परलोक में अनुयायी श्रात्मा नहीं है । इस प्रश्नोत्तर से उनके मत का भी खंडन हो जाता है । अगर आत्मा परलोक में न जाता तो श्रात्मा का ज्ञान-गुण भी कैसे जा सकता है ?
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इस प्रकार गौतम स्वामी के प्रश्न के उत्तर में भगवान् ने फरमाया - हे गौतम । ज्ञान इस भव में भी साथ रहता हैं, परभव में भी साथ रहता हैं और परतरभव में भी साथ रहता है।
दर्शन का अर्थ यहाँ सम्यक्त्व है; क्योंकि मोक्ष मार्ग का प्रकरण है । मोक्षमार्ग के प्रकरण में दर्शन का अर्थ सम्यक्त्व ही लिया जाता है । दर्शन के विषय में भी वही उत्तर समझना चाहिए, जो ज्ञान के सम्बन्ध में दिया गया है।
यहाँ यह प्रश्न हो सकता है कि तत्त्वार्थसूत्र में 'सम्यग् - दर्शन - ज्ञान - चारित्राणि मोक्षमार्गः' इस सूत्र में पहले सम्यगदर्शन और उसके अनन्तर ज्ञानं का उल्लेख किया है; मगर यहाँ पहले ज्ञान का और फिर दर्शन का उल्लेख किया है । इन दो क्रमों में से कौन-सा क्रम ठीक माना जाय ? इसका समाधान यह है कि वास्तविक रीति से पहले सम्यग्दर्शन'
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