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________________ श्रीभगवती सूत्र - [५३०], - इस वर्णन से निम्नलिखित वात स्पष्ट हो जाती हैं: (१) इस भव में ज्ञान नहीं है, इस कारण परभव में भी ज्ञान प्राप्त नहीं किया जा सकता, यह बात नहीं है। (२) परलोक में ज्ञान जाता है। ज्ञान-उपार्जन करने के लिए जो प्रयास किया गया है, उसका फल इसी जन्म में समाप्त नहीं हो जाता । एक जन्म का प्रयास अनेक जन्मों तक फलदायक होता है। (३) जिसने इस जन्म में ज्ञान का अध्ययन नहीं किया, उले परभव में भी पश्चाताप करना पड़ता है। ठाणांग सूत्र में कहा है जो साधु, शिक्षक का योग मिलने पर भी और .. भिक्षा आदि की असुविधा न होने पर भी ज्ञान की आराधना नहीं करता, वह देवभव में जाकर पश्चाताप करता है। . जो वस्तु परलोक में साथ जाने वाली नहीं है, उसके लिए लोग प्रयत्न करते हैं, यहां तक कि ऐसी वस्तुओं के लिए ही लम्पूर्ण जीवन व्यतीत कर देते हैं, मगर जो साथ जाने वाली है, उसी के लिए प्रयत्न कम करते हैं, अथवा करते ही नहीं हैं। जो वस्तु इस भव में भी शायद ही पूरा साथ देती है, जो पल भर में नष्ट-भ्रष्ट या पराई बन जाती है, जो थोड़ी ही देर तक रुचिकर प्रतीत होती है और थोड़ी देर में श्ररुचिकर वन जाती है, इसी तुच्छ चीज़ के लिए जीवन निछावर कर देना और परभव में भी आनन्द देने वाली वस्तु की ओर उपेक्षा रखना, कितने अविवेक की बात है! । प्रतिदिन थोड़ा-थोड़ा ज्ञान प्राप्त किया जाय तो कुछ
SR No.010494
Book TitleBhagavati Sutra par Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherSadhumargi Jain Shravak Mandal Ratlam
Publication Year1947
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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