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ज्ञानादि विषयक प्रश्नोत्तर
तथा उभयभविक भी नहीं है । इसी प्रकार तप और संयम भी
. समझना चाहिए ।
व्याख्यान - सम्यग्ज्ञान, सम्यग्दर्शन और सम्यक्चारित्र, यह तीनों मोक्ष के मार्ग हैं। इनके विषय में गौतम स्वामी प्रश्न करते हैं
हे भगवन् ! मोक्ष के श्रंग ज्ञान आदि को आत्मा जब एक वार प्राप्त कर लेता है, तब यह भवान्तर में साथ रहते है, या इसी भव में रह जाते हैं ? अर्थात् यह अगले भव में साथ जाते हैं या नहीं ?
जीव वर्त्तमान काल में जो भव भोग रहा है वह इह भव कहलाता है । इह भव का ज्ञान श्रागामी भव में जायगा या नहीं ?
इस प्रश्न का उत्तर यह दिया गया है कि ज्ञान तीनों तरह का है। कोई शान ऐभविक है अर्थात् वर्त्तमान भव में ही रहता है, परमंत्र में साथ नहीं जाता। कोई ज्ञान पारभविक है अर्थात् आगामी जन्म में भी श्रात्मा के साथ जाता है । और कोई ज्ञान उभय-भविक है अर्थात् इस भव और परंभव मैं साथ रहता है ।
उभयभविक ज्ञान, एक प्रकार से पारभविक ज्ञान ही है; मगर यहाँ उसे अलग ग्रहण किया है । अतएव उभयभविज्ञान का अर्थ पर तर भविक ज्ञान लेना चाहिए। तात्पर्य यह है कि कोई कोई ज्ञान अगले जन्म से भी अगले जन्म में साथ रहता है। उसे यहाँ उभयभविक ज्ञान कहा है ।