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________________ श्रीभगवती सूत्र {५२८] परभविए चरित्ते, नो तदुभयभविए चरित्ते । एवं तवे, संजमे। . संस्कृत-छाया-प्रश्न-ऐहभविकं मगवन् ! ज्ञानं, पारभविकं ज्ञानं, तदुभयभविकं ज्ञानम् ? । उत्तर-गौतम ! ऐहभाविकमपि ज्ञानं, पारभविक्रमपि ज्ञानं, तदुभयभविकमपि ज्ञानम् । दर्शनमपि एवमेव । प्रश्न-ऐहभविकं भगवन् ! . चारित्रं, पारभविकं चारित्रं, तदुभयभविक चारित्रम् ? उत्तर-गौतम ! ऐहभाविक चारित्रं, नो पारभविकं चारित्रं, नो तदुभयभविकं च रित्रम् । एवं तपः, संयमः । । .. मूलार्थ-प्रश्न-भगवन् ! क्या ज्ञान ऐहभाविक हैं ? पारभविक है या उभयभविक है ? ... ... . ___ उत्तर-गौतम ! ज्ञान ऐहभविक भी है; पारभविक भी है और उभयभविक भी है । इसी प्रकार दर्शन भी। - "प्रश्न-भगवन् ! चारित्र ऐहभविक है, पारभविक है . या उभयमविक है ? . ... उत्तर गौतम चारित्रं ऐहभविक है, पारंभविक नहीं है
SR No.010494
Book TitleBhagavati Sutra par Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherSadhumargi Jain Shravak Mandal Ratlam
Publication Year1947
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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