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________________ श्रीभगवती सूत्र . . (५२२) असंयत का भी भेद नहीं करना चाहिए, क्योंकि इन लेश्याओं में संयम नहीं हो सकता। शंका-भगवती सूत्र के २५ वे शतक में कषाय कुशीला . संयमी को.छहों लेश्याएँ कही हैं, फिर यहां आप तीन श्र. प्रशस्त लेश्याओं में संयम का निषेध कैसे करते हैं ? सामायिक . चारित्र और छेदोपस्थापना चारित्र तथा मनःपर्यय ज्ञान में छहों लेश्याएं बताई गई है, फिर यहां लिर्फ तीन लेश्या वालों में ही साधुपन होता है, ऐसा क्यों कहते हैं ? अतएव यहां प्र. मादी, अप्रमादी के भेद का जो निषेध किया है सो उचित नहीं जान पड़ता। हां यह कहा जा सकता है कि कृष्ण श्रादि . तीन लेश्या चाले प्रमादी ही हैं; अप्रमादी नहीं। . समाधान: यदि प्रमादी होने के कारण ही अप्रशस्त लेश्याओं का होना कहते हो तो पुलाक-नियठा (निर्ग्रन्थ-साधु) सूल गुण और उत्तर गुण के प्रतिसेवी हैं और लब्धि फोड़ने पर उनमें तीन शुद्ध लेश्याएँ ही कही हैं। अगर इनमें अप्र: शस्त लेश्याएँ भी होती, तो फिर तीन प्रशस्त लेश्याएँ ही . क्यों कही है ? इसी प्रकार बकुश नियंठा में भी तीन ही. लेश्याएँ कही है। ''कोई अपने में दोष लगाना नहीं चाहता, फिर भी दोष लग गया है। किन्तु दोष लगने मात्र से लेश्या बुरी नहीं . हो सकती । एक आदमी संकट में पड़ कर, विवशता से बुरा काम करता है और दूसरा स्वेच्छा से प्रसन्नता पूर्वक । इन दोनों में कुछ भेद है या नहीं ? अवश्य है। पहला मनुष्य बुरा काम करता हुआ भी विचार से शुद्ध है। दूसरा काम से और
SR No.010494
Book TitleBhagavati Sutra par Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherSadhumargi Jain Shravak Mandal Ratlam
Publication Year1947
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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