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________________ [५२३] . दण्डकों में प्रात्मारम्भादि वर्णन विचार से भी अशुद्ध है । अगर दोनों की लेश्याएँ समान मानी जाएँ तो दोनों समानरूप से पापी समझे जाएँगे। श्राचार्य कहते हैं कि कुशील में,जो वह लेश्याएँ कही हैं, उनमें तीन द्रव्य लेश्याएँ और तीन भाव लेश्याएँ हैं। तात्पर्य यह है कि पहले अशुद्ध लेश्या थी। भावना पलटी और साधुपना भा गया । इस लिए भाव लेश्या तो शीघ्र पलट गई, मगर द्रव्य लेश्या के पलटने में देरी लगती है। ऐसी स्थिति में द्रव्य लेश्या तो तीन पहले वाली बनी रही, मगर भाव लेश्याएँ तीन प्रशस्त हो गई । इन तीन अप्रशस्त लेश्याओं में प्रमादी, अप्रमादी का अभाव है। अतएव कुशीलनियंठा में जो छह लेश्याएँ कही हैं उनमें तीन द्रव्य लेश्याएँ समझनी चाहिए । इस विषय का विशेष विचार सद्धर्ममण्डन नामक ग्रंथ में किया गया है। तेरहपंधी कहते हैं कि भगवान् में छह लेश्याएँ थीं और पाठों कर्म मौजूद थे। श्रतएव गौशाला को मृत्यु से बचाने में अगर वह चूक गये तो आश्चर्य ही क्या है ?.जर उनसे कहा जाता है कि कपायकुशालनियंठा में लेना क्यों कहा है ? तव कहते हैं-कहा होगा किसी अपेक्षा से, ! अव उनसे पूछते हैं कि-पुलाक-नियठा धकुशनियंठा तथा प्रतिसेवनानियंठा में तीन शुद्ध लेश्याएँ क्यों कहीं हैं ? तो बस, चुप हो रहते हैं। भगवान में शुद्ध लेश्या कही गई है। मगर तेरहपंथी गोशालक को बचाने के कारण भगवान् को पाप लगना कहना चाहते थे, इसलिए उन्होंने भगवान् को लेश्याएँ भी छह कह दी है।
SR No.010494
Book TitleBhagavati Sutra par Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherSadhumargi Jain Shravak Mandal Ratlam
Publication Year1947
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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