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श्रीभगवती सूत्र
[५२०॥ अगर मैं संयम के साथ इन दुःखों को सहन करुंगा तो सर्वार्थसिद्ध के देवता भी मेरी समानता नहीं कर सकेंगे। मैंने संसार में रहकर घोर दुःख पाया, फिरभी कोई फल नहीं. निकला । लेकिन संयम का पालन करते हुए यह जो दुःख
आया है, इसे अगर प्रसन्नता पूर्वक, संयम में स्थिर रहते · हुएं संहन कर लिया तो मेरा संयम रूपी हीरा सुरक्षित
रह जायंगा और उसके प्रभाव से अनन्त और अक्षय मुख
की प्राप्ति होगी। यह दुःख, दुःख नहीं है, मेरा आन्तरिकविकार __ ही है, जो दुःख के रूप में बाहर फूट रहा है। इसका वाहर निकल जाना ही श्रेयस्कर है। .
जुलाव लेने पर भी दस्त लगते हैं और संग्रहणी की बीमारी में भी दस्त लगते हैं । इन दोनों प्रकार के दस्तों में क्या विशेषता है ? एक दस्त रोग ले भरा हुआ है और दूसरा रोग को बाहर निकालता है । वही वात दु:ख के सम्बन्ध में है। कोई कोई दुःख, दुःख को बढ़ाने वाला होता है, कोई दुःख आत्मा को चिर सुखी बनाता है। .. - गौतम स्वामी,भगवान् से पूछते हैं-भगवन् ! सलेश्यवेश्या वाले-जीव आत्मारंभी हैं, परारंभी हैं, उभयारंभी हैं, या अनारंभी हैं ? . . .
. इस प्रश्न के उत्तर में भगवान् फरमाते हैं लेश्यावाले जीव के विषय में वही उत्तर समझ लो, जो जीव के विषय में दिया गया है । कृष्ण, नील और कापोत लेश्या वाले जीवों को
औधिक समझो । इतनी विशेषता अवश्य है कि इनमें प्रंमांदी, अंप्रमादी तथा संयतं, असंयत का भेद नहीं है। क्योंकि जिनमें यह तीन लेश्याएँ होती हैं, वे संयत (साधु)