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दण्डकों में आत्मारम्भादि वर्णन
धर्म का पालन न घोर दुःख में होता है, न घोर सुख में। मध्यम श्रेणी के जीव ही व्रतों का पालन कर सकते हैं । नरक के जीव बहुत दुखी हैं और स्वर्ग के जीव बहुत सुखी है; इसलिए इन दोनों के ही व्रत नहीं होते । सुख दुख के संग्राम में उतर कर श्रात्मा को वहाँ उत्तम घवाये रखने वाला ही व्रत में उतर सकता है ।
भगवान् कहते हैं—-गौतम! नारकी अती हैं, इस कारण वे अनारंभी नहीं हैं। इसी प्रकार असुरकुमार ले वैमानिक देव तक सभी देवगति वाले निरारंभी नहीं हैं, क्योंकि " वे सभी श्रव्रती है।
यह कथन करके भगवान् ने सावधान किया है किहे साधुन । ऐ मनुष्यो ! जो योग देवों को भी प्राप्त नहीं हो सकता, वह योग: तुम्हें प्राप्त है । इस दुर्लभ योग को प्रमादी होकर वृथा न खोओ। देवता भी निरारंभी नही हो सकते । तुम निरारंभी हो सकते हो ।. इसलिए व्रतों का पालन करने श्रसावघान मत रहना ।
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पृथ्वीकाय के जीव एकेन्द्रिय हैं। हिलते डूलते नहीं हैं, न कुछ क्रिया ही करते हैं । वे इतने स्थिर हैं कि साधु भी उतना स्थिर नहीं दिखाई देता । साधुओं को पृथ्वी के समान बनने के लिए कहा जाता है। फिर भी वह वैसे नहीं हो पातेः। पृथ्वी अच्छे-बुरे सभी व्यवहारों को समानभाव से सहन करती है । तो क्या पृथ्वी के जीव निरारंभी हैं ? इस प्रश्न के उत्तर में भी भगवान् ने यही कहा है कि वे भी निरारंभी नहीं हैं। क्योंकि आत्मा की शुद्ध दशा की धारणा और आत्मा की
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