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श्रीभगवती सूत्र
[५१६॥ - नैरयिकों की तरह वान-व्यन्तर यावत् वैमानिक समझना।
लेश्या वाले जीवों के विषय में सामान्य जीवों के समान समझना चाहिए । कृष्णलेश्या वाले नीललेश्या और कापोतलेश्या वाले जीव भी, सामान्य जीव की भांति हैं । विशेषता यह है कि सामान्य जीवों में कहे हुए प्रमत्त और अप्रमत्त यहां नहीं कहना चाहिए । तथा तेजोलेश्या वाले, पद्मलेश्या वाले और शुक्ललेश्या वाले जीव सामान्य जीवों के समान समझना । विशेषता यह कि सामान्य जीवों में से सिद्धों का कथन यहां नहीं करना चाहिए।
· व्याख्यान-गौतम स्वामी पछते हैं:-भगवन् ! नारकी जीव घोर दुःख भोग रहे हैं, उन्हें एक श्वास की भी साता . नहीं है, और अशक-ऐसे हैं. कि कुछ कर नहीं सकते । इस. 'लिए वे निरारंभी हैं,
इस प्रश्न के उत्तर में भगवान् फरमाते हैं-हे गौतम.! नारकी.जीव आत्मारंभी हैं, परारंभी हैं, परन्तु निरारंभी नहीं हैं। मेरी आरंभी और अनारंभी की व्याख्या शक्ति-अंशति यो दुःख-सुख पर अवलंबित नहीं है, किन्तु व्रत, और अव्रत को अपेक्षा से है। नरक के जीवों के न व्रत है, न मर्यादा है . और न उन जीवों के व्रत-मर्यादा हो ही सकती है।