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________________ श्रीभगवती सूत्र [५०८]. . यद्यपि प्रतिलेखन करते समय छहों कार्यों के जीव वहाँ नहीं पाते, लेकिन जहाँ उपयोग है वहीं दया है। उपयोग न रखना ही हिंसा है। ऊपर जो गाथा प्रमाण रूप में उद्धृत की गई है, उस का व्यतिरेक रूप से अर्थ किया जाय तो यह स्पष्ट है कि उपयोग शुद्ध हो और प्रतिलेखन करे तो छहों कार्यों की दया करता है । अतएव यहाँ योग का अर्थ सामान्य योग नहीं लिया गया है, किन्तु उपयोग के अर्थ में योग शब्द का व्यव. हार किया गया है । मन, वचन, क्यय की प्रवृत्ति रूप धोम यहाँ लिया जाय तो बड़ी गड़बड़ी होगी। . . सातवे से दसवें गुणस्थान में योग के नौ भेद माने जाते हैं। मगर तेरहपंथियों ने नौ भेद मिटा कर उनके स्थान पर पांच ही भेद रख दिये हैं। शुभ योग मिथ्यात्वी और, अमव्य जीव के भी होता है, मगर उनके उपयोग-यतना-नहीं होने के कारण उन्हें निरारम्भी नहीं कहा जा सकता। सार यह है कि प्रमादी साधु छठे गुणस्थान में हैं। शब्द नय के अनुसार जिसमें उपयोग है, वह साधु है और जिसमें उपयोग नहीं है, वह साधु नहीं है । अनारम्भी होत का कारण उपयोग है। . शरीर के योग से तेरहवं गुणस्थान तक हिंसा होती है। लेकिन उपयोग होने से वह हिंसा, हिंसा नहीं मानी जाती। 'प्रतिलेखन करते समय भी हलन-चलन होता है. और उससे जीवघात भी होता है, लेकिन वहां उपयोग युक्त शुभ योग हैं, इस लिए हिंसा नहीं है। ऐसा साधु शुभयोगी
SR No.010494
Book TitleBhagavati Sutra par Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherSadhumargi Jain Shravak Mandal Ratlam
Publication Year1947
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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