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________________ श्रीभगवती सूत्र [५०४ | उसका मुँह जलाने श्रायगा या मिर्च में ही मुँह जमाने का गुण है। मिश्री अगर मिठास नहीं देती और मिर्च मुँह नहीं जलाती, तो वह मिश्री या मिर्च ही नहीं है। इसी प्रकार कर्म में अगर शुभाशुभ फल देने की शक्ति न हो तो वह कर्म ही नहीं है । जिस प्रकार मुँह को मीठा करने और जलाने का गुण मिश्री और मिर्च में है, उसी प्रकार शुभ और अशुभ फल देने की शक्ति कर्म में है । प्रश्न होता है कि क्या ईश्वर को कर्त्ता न माना जाय ? हम प्रार्थना में ईश्वर को कर्त्ता मानते हैं, लेकिन इसका तात्पर्य यह नहीं है कि ईश्वर के सिर पर संसार रचने का मार लाते हैं और उसे संसार - कार्य में प्रवृत्त करते हैं । भगवान् ने अपने शान में सब जीवों को देखा है। जीव स्वयम् तो अपने कार्यों को नहीं जानते, परन्तु ईश्वर को अपने विशिष्ट ज्ञान द्वारा सब के कार्यों का पता है । इसी लिए उन्होंने गौतम स्वामी को अपना वजीर बना कर सब हाल बतला दिया कि जीव इस प्रकार आत्मारंभी, इस प्रकार परारंभी और इस प्रकार उभयारंभी या निरारंभी होते हैं । ऐसा प्रकट करके भगवान ने जगत् को सन्मार्ग दिखलाया है। सन्मार्ग प्रदर्शक होने से भगवान कर्त्ता है । हम परमात्मा से प्रार्थना करते हैं आग्गवोहिलाभ, समाहिवरमुचमं दिन्तु । अयात्-रोग रहित बौधि और श्रेष्ठतम समाधि दीजिए । 7 अगर परमात्मा कुछ न देता होता तो उससे यह याचना क्यों की जाती ? इससे प्रकट है कि परमात्मा निमित्त रूप से कर्त्ता है । वह समस्त श्रात्मगुणों को प्रकट करने
SR No.010494
Book TitleBhagavati Sutra par Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherSadhumargi Jain Shravak Mandal Ratlam
Publication Year1947
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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