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________________ [४६७] शात्म परारम्भादि वर्णन वस्त्र पहनने का उद्देश्य शरीर को शीत-तापसे बचाना है। यह उद्देश्य क्या खादी पहनने से सिद्ध नहीं होता? रहा इज्जत का सवाल, सो आज जनता की. मनोभावना में बहुत अन्तर पड़ गया है । अव खादी जिस आदर की दृष्टि से देखी जाती है, वह आदर चमकीले भड़कीले वस्त्रों को भी नसीव नहीं है। ऐसी स्थिति में जो लोग खादी नहीं पहनते वे धर्म और इज्जत दोनों से हाथ धोते हैं। , महारम्भ का त्याग करके अल्पारम्भी होना ही निरा. रम्भी होने का मार्ग है। आज महारम्भ का त्याग करोगे तो 'कल अल्पारम्भ को भी त्याग कर निरारम्भी हो सकोगे और अन्त में सिद्ध हो जाओगे। श्राप लोग सन्देहही सन्देह में पढ़े रहते हैं । सुनते हैं, यूरोपियन लोग जब तक न जाने, तब तक तो चाहे न करेंगे, मगर जान लेने पर करने में देरी नहीं लगाते । आप लोग समझते हैं, पुरे को पुरा जान लिया तो वस हो गया, मिथ्यात्व का पाप टल गया। लेकिन पर-स्त्री कों पर स्त्री समझते हुए कुकर्म करने वाला क्या पाप का भागी नहीं होता ? इसी प्रकार महारंभ और अल्पारंभ को जानते हुए भी अगर महारस्म को न छोड़ा तो यह जानना कैसा ! इस जानने का फल क्या है ? .एक गृहस्थ के घर में चोर घुस । चोर जव घर में थे, नमी सठानी की निद्रा भंग हो गई । सेठानी ने सेठजी को जगाया, सावधान किया और कहा-घर में चोर घुसे हैं, माल लिये जा रहे हैं । सेठजी ने उत्तर दिया-'ठीक है, मालूम हो गया। सटानी ने फिर सेठ को चेताया, मगर उत्तर वही
SR No.010494
Book TitleBhagavati Sutra par Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherSadhumargi Jain Shravak Mandal Ratlam
Publication Year1947
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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