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________________ श्रीमंगवती सूत्र, 'जानता हूं, मालूम है। अन्त में सेठजी "जानता हूं, जानता हूं," करते रहे और चोर माल असबाब उठा ले गये। इसी प्रकार देश सेवक प्रापको चेतावनी दे रहे हैं कि . जागो, सँभलो, देखो धन चला जा रहा है। अभी कुछ विशेष नहीं बिगड़ा है। अभी थोड़े ही पराक्रम का काम है, और वह भी सिर्फ इतना ही की महारंभ को त्याग दीजिए । वि. देशी खान-पान और वृथा व्यय से मुँह मोड़ लीजिए । उन्नति के कार्यों में जुट जाइए । श्राप विवाह आदि अवसरों पर जो वृथा व्यय करते हैं, वही अगर देश और जाति के उत्कर्ष में करें तो क्या आपको बदला नहीं मिलेगा? श्राप समझते हैं, विवाह में अधिक खर्च करने से समाज में सम्मान मिलता है, मगर क्या आप यह भी जानते हैं कि इससे कौन सम्मान " देता है? - 'मुर्ख लोग!' तोइन मुखोद्वाराप्राप्त होने वाले सम्मान कोतोआप मानते हैं, लेकिन देश सेवकों द्वारा मिलने वाले सम्मान को क्या आप सम्मान नहीं समझते ? आप जो फिजूल खर्च करते हैं सो आप अपनी समझ में अपना खर्च करते हैं; लकिन देश-सेवकों का कहना है कि श्राप भारतवर्ष के धन से होली खेल रहें हैं। आप ऐसा करके भारत का गला दबोच रहे हैं। कदा चित् श्राप देश और समाज की उन्नति में खर्च न करें, सिर्फ विवाह-शादियों और विदेशी वस्तुओं में खर्च करना बंद करदें, तो भी वह धन वचा तो रह सकेगा! अगर सेठ की तरह 'जानूं हूं, जानू हूं' करते रहे और जानकर भी आलस्य में पड़े रह तो पूर्वोक सेठ की भांति लुट जानोगे और सेठानी के . धिक्कार के पात्र बनोगे।
SR No.010494
Book TitleBhagavati Sutra par Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherSadhumargi Jain Shravak Mandal Ratlam
Publication Year1947
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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