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________________ [ ५] धात्म-परारम्भादि वर्णन भी ध्यान रखना चाहिए कि शालभद्र ने उन वस्त्रों को भी बन्धन कारक समझ कर त्याग दिया था। उसने कहा थायह वस्त्र हमें नीचे गिराने वाले हैं। ऊँचे चढ़ाने वाले नहीं। अतएव शालिभद्र ने स्वर्गीय चलों को त्याग कर, मुनि चत कर देश की खादी धारण की थी। यह विचारणीय है कि जब स्वर्ग के वस्त्र भी वन्धनकारक है तो मिल के रख, जो महारम्भ से बने हैं, अधोगति के कारण क्यों न होंगे। मुझे मिलों से द्वेष नहीं है। पारम्म और महारम्भ की मीमांसा करना और आप को यवलाना मेरा कर्तव्य है। अगर नग्न न रह सके और अपारम्भी वस्त्र भी शरण न किये तो महारम्भ में पड़ना ही पड़ेगा। कहा जा सकता है कि वन-वन सव समान है। कौन वन कहाँ बना है, इस पचड़े में पड़ने की हमें क्या पावश्यकता है ? हमें वो तन ढंकने से प्रयोजन है । लेकिन अगर मांसभक्षी भी यह कहने लगे कि हमें तो पेट भरने से मतलब है। अन्न हो या मांस हो, हमें इस पचड़े में पड़ने की क्या आवश्यकता है ? तो क्या उसका कहना ठीक होगा? अतएव चख-पत्र सब समान है यह समझना और अल्पारम्भ, महारम्भ का विचार न करना धर्मशता का लक्षण नहीं है। : संसार का पतन असहज कर्म से हुआ है, सहज कर्म से नहीं हुआ। बालक, माता का दूध पीता है, यह सहज कर्म है और फपीना असहज कर्म है । उचित यह समझा जाता है कि बड़ा होने पर बालक सहज कर्म दूध पीना भी छोड़ दे। लेकिन जब तक बड़ा नहीं हुआ है, वयं तक रक्त पीने कर असहज कर्म तो न करे!
SR No.010494
Book TitleBhagavati Sutra par Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherSadhumargi Jain Shravak Mandal Ratlam
Publication Year1947
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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