SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 175
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री भगवती सूत्र (४२४) इस प्रकार सहज कर्म और असहज कर्म का अर्थ अल्पारम्भ और अहारम्भ लेना चाहिए । आज कई लोग ल्यारम्भ और महारम्भ का विवेचन करके एकदम निरारम्भी होने का उपदेश देते हैं । वे महारम्भ को त्यागने का उपदेश नहीं देते वरन् महारम्भ को छोड़े बिना ही निरारम्भी होने का उपदेश देते हैं । इसका परिणाम यह आ रहा है कि लोग निरारम्भी तो हो नहीं पाते, और महारम्भ में पड़े रहते हैं । गांधीजी ने श्राज जिस श्र हिंसा का उपदेश दिया है, वह यही है कि महारम्भ से बचो । महारम्भ से निकलने वाला अहिंसावादी ही माना जायगा । एक कपड़ा चखे से बना हुआ है और एक मिल से चना हुआ होता है । चर्खे से बने कपड़े में अल्पारम्भ है और मिल के बने कपड़े में महारम्भ है । अगर वस्त्र के बिना ही निर्वाह हो सके, तब तो दोनों ही प्रकार के आरम्भ उठ जाएँ, लेकिन वस्त्र के बिना नहीं रहा जाता, अतएव महारम्भ की जगह अल्पारम्भ से काम चलाना श्रेयस्कर है । तात्पर्य यह है कि अल्पारम्भ और महारम्भ, दो वातें | नग्न रहना शक्य नहीं है, श्रतएव वस्त्र की आवश्यकता हुई । चत्र विना श्रारम्भ के मिल नहीं सकते। ऐसी अवस्था में वस्त्र के लिए महारम्भ होने देना, यां अल्पारम्भ से ही काम चलाना, इस विषय पर विवेक के साथ विचार करने. की आवश्यकता है। कदाचित् श्राप का यह खयाल हो कि जैसे शालिभद्र के लिए स्वर्ग से पेटियाँ आती थीं, उसी प्रकार हम लोगों के लिए मैनचस्टर से गाँठे श्राती हैं और विना श्रारम्भ किये ही हमें वस्त्र मिल जाते हैं। मगर आप को यह
SR No.010494
Book TitleBhagavati Sutra par Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherSadhumargi Jain Shravak Mandal Ratlam
Publication Year1947
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy