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________________ • श्रीभगवती सूत्र [४८८ उत्तर-गौतम ! कितनेक जीव आत्मारंभ भी है, परारंभ भी हैं और उभयारंभ भी हैं, पर अनारंभ नहीं हैं। तथा कुछ जीव आत्मारंम नहीं हैं, परारंभ नहीं हैं, उभयारंभ नहीं हैं, पर अनारंभ हे.. . . . प्रश्न-भगवन् ! इस प्रकार किस हेतु से कहते हैं कि 'कितनेक जीव आत्मारंभ भी हैं ', इत्यादिक पूर्वोक्त प्रश्न फिर से उच्चारण करना चाहिए ? ... . उत्तर-गौतम ! जीव दो प्रकार के कहे गये हैं ! वे इस प्रकार-संसारसमापन्नक और असंसारसमापन्नक । उन. में जो जीव असंसारसमापन्नक हैं, वें सिद्ध हैं और वे आत्मारंभ परारंभ या उभयारंभ नहीं हैं, पर अनारंभ हैं। उनमें से जो संसारसमापनक हैं, वे दो प्रकार के कहे गये हैं। वह इस प्रकार संयत और असंयत । उनमें जो संयत हैं; वे दो प्रकार के हैं । वह इस प्रकार-प्रमत्त संयत और अप्रमत्त संयत। उनमें जो अप्रमत्त संयत हैं वे आत्मारंभ, परारंभ या उभयारंभ नहीं हैं, पर अनारंम हैं । उन में जो प्रमत्तसंयत हैं, वे शुभ योग की अपेक्षा आत्मारंभ,' परारंभ यांवत् उभयारंभ नहीं, पर अनारंभ हैं। और वे अशुभ योग की अपेक्षा आत्मारंभ भी है, यावत् अनारंभ नहीं है। और जो असंयत हैं, वे
SR No.010494
Book TitleBhagavati Sutra par Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherSadhumargi Jain Shravak Mandal Ratlam
Publication Year1947
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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