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________________ [४८१] दण्डक-व्याख्यान इन जीवों का प्राभोग पाहार रोम द्वारा भी होता है। जब वर्षा होती है तव रोमों द्वारा शीत श्राप ही श्राजाता है। वह रोमाहार कहलाता है। द्वीन्द्रिय जीवों के प्राभोग-शाहार के विषय में यह भी स्पष्ट कर दिया गया है कि वे रोम द्वारा गृहीत आहार को पूर्ण रूप से खा जाते हैं और प्रक्षेपाहार का वहुत-सा भाग नष्ट हो जाता है और असंख्यातवाँ भाग शरीर रूप में परिणत होता है । इस कथन के आधार पर यह प्रश्न किया गया है कि जो पुद्गल स्पर्श में तथा प्रास्वाद में आये विना ही नष्ट हो जाते हैं, उनमें कौन से अधिक हैं ? अर्थात् स्पर्श में न -भाने वाले पुद्गल अधिक है या आस्वाद में न आने वाले ? इस प्रश्न का उत्तर यह दिया गया है कि आस्वाद में न भाने वाले पुद्गल थोड़े हैं और स्पर्श न किये जाने वाले पुद्गल अनन्तगुण हैं । , त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जीवों की स्थिति में अन्तर है। त्रीन्द्रिय जीवों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट ४६ रात:दिन की है। चौइन्द्रिय जीवों को जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट छह मास की है । आहार आदि में जो अन्तर है, वह पहले बतलाया जा चुका है। . . पंचेन्द्रिय तिर्यंच का श्राहार पष्ठभक्त अर्थात् दो दिन बीत जाने पर बतलाया गया है। यह आहार देवकुरू और उत्तर कुरू के युगलिक तिर्यंचों की अपेक्षा कहा गया है । इसी प्रकार मनुष्यों का जो अष्टमभक अर्थात् तीन दिन बाद श्राहार कहा है, वह. भी देवकुरू, उत्तरकुरू के युगलिक मनुष्यों की अथवा भरतादि में जव प्रथम आरा प्रारम्भ होता
SR No.010494
Book TitleBhagavati Sutra par Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherSadhumargi Jain Shravak Mandal Ratlam
Publication Year1947
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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